महाभारत में गुरु द्रोण को अपने पुत्र अश्वथामा से बहुत प्यार था। इसी कारण वे शिक्षा में भी अन्य छात्रों से भेदभाव करते थे। जब उन्हें सभी कौरव और पांडव राजकुमारों को चक्रव्यूह की रचना और उसे तोड़ने के तरीके सिखाने थे तो उन्होंने शर्त रख दी कि जो राजकुमार नदी से घड़ा भरकर सबसे पहले पहुंचेगा, उसे ही चक्रव्यूह की रचना सिखाई जाएगी।
गुरु द्रोणाचार्य का जन्म : महाभारत के आदिपर्व में कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य के बारे में कहा जाता है कि वो अपने माता-पिता के परस्पर मिलन से नहीं बल्कि एक विचित्र विधि द्वारा पैदा हुए थे।
जिसे आज के भौतिक युग में ‘टेस्ट ट्यूब’ के नाम से जाना जाता है। अधिकतर लोग ये सोचते है कि दुनिया में सबसे पहले इस विधि द्वारा कौरवों ने जन्म लिया था जब उन्हें उनकी माता गांधारी ने घड़ों में मांस के टुकड़े को रखकर सौ कौरवों को जन्म दिया था। पांडवों और कौरवों गुरु द्रोणाचार्य दुनिया के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी थे।आदिपर्व में गुरु द्रोणाचार्य के जन्म की एक विचित्र कथा सुनने को मिलती है। द्रोणाचार्य कौरव व पाण्डव राजकुमारों के गुरु थे। उनके पुत्र का नाम अश्वत्थामा था जो यम, काल, महादेव व क्रोध का अंशावतार था।महाभारत के आदिपर्व की कथानुसार एक समय गंगाद्वार नामक स्थान पर महर्षि भारद्वाज रहा करते थे। वे बड़े व्रतशील व यशस्वी थे। एक बार वे यज्ञ कर रहे थे। वे महर्षियों को साथ लेकर गंगा स्नान करने गए।
वहां उन्होंने देखा कि घृताची नामक अप्सरा स्नान करके जल से निकल रही है। उसे देखकर उनके मन में काम वासना जाग उठी उन्हें अपने खुले नेत्रों से उस अप्सरा के साथ काम क्रियाएं करने की कल्पना करनी आरंभ कर दी। इसके कुछ समय बाद उनका वीर्य स्खलित होने लगा। तब उन्होंने उस वीर्य को द्रोण नामक यज्ञपात्र में रख दिया। उसी से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ। द्रोण ने सारे वेदों का अध्ययन किया। महर्षि भरद्वाज ने पहले ही आग्नेयास्त्र की शिक्षा अग्निवेश्य को दे दी थी। अपने गुरु भरद्वाज की आज्ञा से अग्निवेश्य ने द्रोणाचार्य को आग्नेयास्त्र की शिक्षा दी। द्रोणाचार्य का विवाह शरद्वान की पुत्री कृपी से हुआ था। कृपी के गर्भ से महाबली अश्वत्थामा का जन्म हुआ। उसने जन्म लेते ही अश्व के समान गर्जना की थी इसलिए उसका नाम अश्वत्थामा था…
सभी राजकुमारों को बड़े घड़े दिए जाते, लेकिन अश्वत्थामा को छोटा घड़ा देते ताकि वो जल्दी से भरकर पहुंच सके। सिर्फ अर्जुन ही ये बात समझ पाया और अर्जुन भी जल्दी ही घड़ा भरकर पहुंच जाता।
जब ब्रह्मास्त्र का उपयोग करने की बारी आई तो उस समय भी द्रोणाचार्य के पास दो ही लोग पहुंचे। अर्जुन और अश्वत्थामा। अश्वत्थामा ने पूरे मन से ब्रह्मास्त्र की विधि नहीं सीखी। ब्रह्मास्त्र चलाना तो सीख लिया, लेकिन लौटाने की विधि नहीं सीखी। उसने सोचा गुरु तो मेरे पिता ही हैं, कभी भी सीख सकता हूं। द्रोणाचार्य ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन इसका खामियाजा अश्वथामा को भुगतना पड़ा।
महाभारत युद्ध के बाद जब अर्जुन और अश्वत्थामा ने एक-दूसरे पर ब्रह्मास्त्र चलाया तो वेद व्यास के कहने पर अर्जुन ने तो अपना ब्रह्मास्त्र लौटा लिया, लेकिन अश्वत्थामा ने नहीं लौटाया क्योंकि उसे इसकी विधि पता नहीं थी। इस कारण अश्वथामा को शाप मिला। उसकी मणि निकाल ली गई और कलियुग अंत तक धरती पर भटकने के लिए छोड़ दिया गया।
अगर द्रोणाचार्य अपने पुत्र मोह पर नियंत्रण रखकर उसे शिक्षा देते और अन्य राजकुमारों से भेदभाव नहीं करते तो शायद अश्वत्थामा को कभी इस तरह की सजा नहीं भुगतनी पड़ती।
गुरु द्रोणाचार्य का जन्म : महाभारत के आदिपर्व में कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य के बारे में कहा जाता है कि वो अपने माता-पिता के परस्पर मिलन से नहीं बल्कि एक विचित्र विधि द्वारा पैदा हुए थे।
जिसे आज के भौतिक युग में ‘टेस्ट ट्यूब’ के नाम से जाना जाता है। अधिकतर लोग ये सोचते है कि दुनिया में सबसे पहले इस विधि द्वारा कौरवों ने जन्म लिया था जब उन्हें उनकी माता गांधारी ने घड़ों में मांस के टुकड़े को रखकर सौ कौरवों को जन्म दिया था। पांडवों और कौरवों गुरु द्रोणाचार्य दुनिया के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी थे।आदिपर्व में गुरु द्रोणाचार्य के जन्म की एक विचित्र कथा सुनने को मिलती है। द्रोणाचार्य कौरव व पाण्डव राजकुमारों के गुरु थे। उनके पुत्र का नाम अश्वत्थामा था जो यम, काल, महादेव व क्रोध का अंशावतार था।महाभारत के आदिपर्व की कथानुसार एक समय गंगाद्वार नामक स्थान पर महर्षि भारद्वाज रहा करते थे। वे बड़े व्रतशील व यशस्वी थे। एक बार वे यज्ञ कर रहे थे। वे महर्षियों को साथ लेकर गंगा स्नान करने गए।
वहां उन्होंने देखा कि घृताची नामक अप्सरा स्नान करके जल से निकल रही है। उसे देखकर उनके मन में काम वासना जाग उठी उन्हें अपने खुले नेत्रों से उस अप्सरा के साथ काम क्रियाएं करने की कल्पना करनी आरंभ कर दी। इसके कुछ समय बाद उनका वीर्य स्खलित होने लगा। तब उन्होंने उस वीर्य को द्रोण नामक यज्ञपात्र में रख दिया। उसी से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ। द्रोण ने सारे वेदों का अध्ययन किया। महर्षि भरद्वाज ने पहले ही आग्नेयास्त्र की शिक्षा अग्निवेश्य को दे दी थी। अपने गुरु भरद्वाज की आज्ञा से अग्निवेश्य ने द्रोणाचार्य को आग्नेयास्त्र की शिक्षा दी। द्रोणाचार्य का विवाह शरद्वान की पुत्री कृपी से हुआ था। कृपी के गर्भ से महाबली अश्वत्थामा का जन्म हुआ। उसने जन्म लेते ही अश्व के समान गर्जना की थी इसलिए उसका नाम अश्वत्थामा था…
सभी राजकुमारों को बड़े घड़े दिए जाते, लेकिन अश्वत्थामा को छोटा घड़ा देते ताकि वो जल्दी से भरकर पहुंच सके। सिर्फ अर्जुन ही ये बात समझ पाया और अर्जुन भी जल्दी ही घड़ा भरकर पहुंच जाता।
जब ब्रह्मास्त्र का उपयोग करने की बारी आई तो उस समय भी द्रोणाचार्य के पास दो ही लोग पहुंचे। अर्जुन और अश्वत्थामा। अश्वत्थामा ने पूरे मन से ब्रह्मास्त्र की विधि नहीं सीखी। ब्रह्मास्त्र चलाना तो सीख लिया, लेकिन लौटाने की विधि नहीं सीखी। उसने सोचा गुरु तो मेरे पिता ही हैं, कभी भी सीख सकता हूं। द्रोणाचार्य ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन इसका खामियाजा अश्वथामा को भुगतना पड़ा।
महाभारत युद्ध के बाद जब अर्जुन और अश्वत्थामा ने एक-दूसरे पर ब्रह्मास्त्र चलाया तो वेद व्यास के कहने पर अर्जुन ने तो अपना ब्रह्मास्त्र लौटा लिया, लेकिन अश्वत्थामा ने नहीं लौटाया क्योंकि उसे इसकी विधि पता नहीं थी। इस कारण अश्वथामा को शाप मिला। उसकी मणि निकाल ली गई और कलियुग अंत तक धरती पर भटकने के लिए छोड़ दिया गया।
अगर द्रोणाचार्य अपने पुत्र मोह पर नियंत्रण रखकर उसे शिक्षा देते और अन्य राजकुमारों से भेदभाव नहीं करते तो शायद अश्वत्थामा को कभी इस तरह की सजा नहीं भुगतनी पड़ती।
महाभारत गुरु द्रोणाचार्य वध।
गुरु द्रोण ने की थी ये लापरवाही, इसी वजह से अश्वथामा को मिला शाप
Reviewed by Mukesh Mali
on
6/21/2017 11:45:00 AM
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