जो व्यक्ति दो अथवा तीन बेलपत्र भी शुध्द्तापूर्वक भगवन शिवजी पर चढ़ाता है,तो उसे निःसंदेह भवसागर से मुक्ति प्राप्ति होती है| जो व्यक्ति अखंडित (बिना कटा हुआ ) बेलपत्र भगवान शिव पर चढ़ाता है, वह निर्विवाद रूप से अंत में शिव लोक को प्राप्त होता है| बिल्व वृक्ष के दर्शन, स्पर्शन व प्रणाम करने से ही रात- दिन के सम्पूर्ण पाप दूर हो जाया करते हैं|
चौथ, अमावस्या, अष्टमी, नवमी, चौदस, संक्रांति, और सोमवार के दिन बिल्वपत्र तोडना मना है| बिल्वपत्र सदैव उल्टा अर्पित करें,अर्थात पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहें|
बिल्वपत्र में चक्र एवम वज्र नहीं होना चाहिये | कीड़ों द्वारा बनाये हुए सफ़ेद चिन्ह को चक्र कहते हैं|एवम बिल्वपत्र के डंठल के मोटे भाग को वज्र कहते हैं|
बिल्वपत्र चढाते समय बिल्वपत्र में तीन से ग्यारह दलों तक के बिल्वपत्र प्राप्त होतें हैं, ये जितने अधिक पत्रों के हों, उतना ही उत्तम होता है| बिल्वपत्र कटे फटे एवम कीड़े के खाए नहीं होने चाहिए|
महादेव को बिल्वपत्र अर्पित करते समय इस मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं ---
त्रीद्लं त्रिगुनाकारम त्रिनेत्रम च त्रिधायुतम | त्रीजन्म पापसंहारम एक बिल्व शिव अर्पिन ||"
बिल्वपत्र मिलने की मुश्किल हो तो उसके स्थान पर चांदी का बिल्वपत्र चढ़ाया जा सकता है |
जिसे नित्य शुद्ध जल से धो कर शिवलिंग पर पुनः स्थापित कर सकते हैं| शिवजी को बेलपत्र चढ़ाने से तीन युगों के पाप नष्ट हो जाते हैं। ग्रंथों में भगवान शिव को प्रकृति रूप मानकर उनकी रचना, पालन और संहार शक्तियों की वंदना की गई है। यही कारण है कि भगवान शिव की उपासना में भी फूल-पत्र और फल के चढ़ावे का विशेष महत्व है। शिव को बेलपत्र या बिल्वपत्र का चढ़ावा बहुत ही पुण्यदायी माना गया है।
शिवपुराण में बेलपत्र के वृक्ष की जड़ में शिव का वास माना गया है। इसलिए इसकी जड़ में गंगाजल के अर्पण का बहुत महत्व है। शिव और बेलपत्र का व्यावहारिक और वैज्ञानिक पहलू भी है। यह शिव पूजा द्वारा प्रकृति से प्रेम और उसे सहेजने की सीख देता है। कुदरत के नियमों या उसकी किसी भी रूप में हानि मानव जीवन के लिए घातक है। इसी तरह प्रकृति और सावन में बारिश के मौसम के साथ तालमेल बैठाने के लिए इसे गुणकारी माना गया है।
सेहत के लिए भी गुणकारी : इसका सेवन वात, पित्त, कफ व पाचन क्रिया के दोषों को दूर करता है। यह त्वचा रोग और मधुमेह बढऩे से भी रोकता है।
1.स्नान करने के बाद साफ वस्त्र पहनकर पूजा करें।
2.माता पार्वती जी का पूजन अनिवार्य रूप से करें।
3.रुद्राक्ष की माला धारण करें।
4.भस्म से तीन तिरछी लकीरों वाला तिलक लगाकर बैठें।
5.शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ प्रसाद ग्रहण नहीं किया जाता। सामने रखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं।
6.शिवमंदिर की आधी परिक्रमा ही की जाती है।
7. केवड़ा और चंपा के फूल न चढ़ाएं।
8.पूजन काल में सात्विक आहार, विचार और व्यवहार रखें।
चौथ, अमावस्या, अष्टमी, नवमी, चौदस, संक्रांति, और सोमवार के दिन बिल्वपत्र तोडना मना है| बिल्वपत्र सदैव उल्टा अर्पित करें,अर्थात पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहें|
बिल्वपत्र में चक्र एवम वज्र नहीं होना चाहिये | कीड़ों द्वारा बनाये हुए सफ़ेद चिन्ह को चक्र कहते हैं|एवम बिल्वपत्र के डंठल के मोटे भाग को वज्र कहते हैं|
बिल्वपत्र चढाते समय बिल्वपत्र में तीन से ग्यारह दलों तक के बिल्वपत्र प्राप्त होतें हैं, ये जितने अधिक पत्रों के हों, उतना ही उत्तम होता है| बिल्वपत्र कटे फटे एवम कीड़े के खाए नहीं होने चाहिए|
महादेव को बिल्वपत्र अर्पित करते समय इस मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं ---
त्रीद्लं त्रिगुनाकारम त्रिनेत्रम च त्रिधायुतम | त्रीजन्म पापसंहारम एक बिल्व शिव अर्पिन ||"
बिल्वपत्र मिलने की मुश्किल हो तो उसके स्थान पर चांदी का बिल्वपत्र चढ़ाया जा सकता है |
जिसे नित्य शुद्ध जल से धो कर शिवलिंग पर पुनः स्थापित कर सकते हैं| शिवजी को बेलपत्र चढ़ाने से तीन युगों के पाप नष्ट हो जाते हैं। ग्रंथों में भगवान शिव को प्रकृति रूप मानकर उनकी रचना, पालन और संहार शक्तियों की वंदना की गई है। यही कारण है कि भगवान शिव की उपासना में भी फूल-पत्र और फल के चढ़ावे का विशेष महत्व है। शिव को बेलपत्र या बिल्वपत्र का चढ़ावा बहुत ही पुण्यदायी माना गया है।
शिवपुराण में बेलपत्र के वृक्ष की जड़ में शिव का वास माना गया है। इसलिए इसकी जड़ में गंगाजल के अर्पण का बहुत महत्व है। शिव और बेलपत्र का व्यावहारिक और वैज्ञानिक पहलू भी है। यह शिव पूजा द्वारा प्रकृति से प्रेम और उसे सहेजने की सीख देता है। कुदरत के नियमों या उसकी किसी भी रूप में हानि मानव जीवन के लिए घातक है। इसी तरह प्रकृति और सावन में बारिश के मौसम के साथ तालमेल बैठाने के लिए इसे गुणकारी माना गया है।
सेहत के लिए भी गुणकारी : इसका सेवन वात, पित्त, कफ व पाचन क्रिया के दोषों को दूर करता है। यह त्वचा रोग और मधुमेह बढऩे से भी रोकता है।
1.स्नान करने के बाद साफ वस्त्र पहनकर पूजा करें।
2.माता पार्वती जी का पूजन अनिवार्य रूप से करें।
3.रुद्राक्ष की माला धारण करें।
4.भस्म से तीन तिरछी लकीरों वाला तिलक लगाकर बैठें।
5.शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ प्रसाद ग्रहण नहीं किया जाता। सामने रखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं।
6.शिवमंदिर की आधी परिक्रमा ही की जाती है।
7. केवड़ा और चंपा के फूल न चढ़ाएं।
8.पूजन काल में सात्विक आहार, विचार और व्यवहार रखें।
शिव पूजा में बिल्व पत्र और बेलपत्र की महिमा
Reviewed by Mukesh Mali
on
4/03/2017 10:25:00 PM
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