शनि देव : कैसे करें शनिदेव को प्रसन्न ?

शनि देव:  पौराणिक मान्यता है कि शनिदेव का जन्म अमावस्या तिथि की ही शुभ घड़ी में हुआ था। इसलिए हिन्दू पंचांग के हर माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर शनि भक्ति बड़ी संकटमोचक होती है। खासतौर पर उन लोगों के लिए जो शनि ढैय्या, साढ़े साती, महादशा या कुण्डली में बने शनि के बुरे असर दु:ख, दारिद्र, कष्ट, संताप, संकट से जूझ रहे हों।


दरअसल, शास्त्रों पर गौर करें तो शनिदेव का चरित्र मात्र क्रूर या पीड़ादायी ही नहीं, बल्कि मुकद्दर संवारने वाले देवता के रूप भी प्रकट होता है। यही नहीं शास्त्रों में बताए शनिदेव के परिवार के अन्य सदस्य भी हमारे सुख-दु:ख को नियत करते हैं।
  • शनि के पिता सूर्यदेव और माता छाया हैं।
  • शनि के भाई-बहन यमराज, यमुना और भद्रा है। यमराज मृत्युदेव, यमुना नदी को पवित्र व पापनाशिनी और भद्रा क्रूर स्वभाव की होकर विशेष काल और अवसरों पर अशुभ फल देने वाली बताई गई है।
  • शनि ने शिव को अपना गुरु बनाया और तप द्वारा शिव को प्रसन्न कर शक्तिसंपन्न बने।
  • शनि का रंग कृष्ण या श्याम वर्ण सरल शब्दों में कहें तो काला माना गया है।
  • शनि का जन्म क्षेत्र - सौराष्ट क्षेत्र में शिंगणापुर माना गया है।
  • शनि का स्वभाव क्रूर किंतु गंभीर, तपस्वी, महात्यागी बताया गया है।
  • शनि, कोणस्थ, पिप्पलाश्रय, सौरि, शनैश्चर, कृष्ण, रोद्रान्तक, मंद, पिंगल, बभ्रु नामों से भी जाने जाते  हैं।
  • शनि के जिन ग्रहों और देवताओं से मित्रता है, उनमें श्री हनुमान, भैरव, बुध और राहु प्रमुख है।
  • शनि को भू-लोक का दण्डाधिकारी व रात का स्वामी भी माना गया है।
  • शनि का शुभ प्रभाव अध्यात्म, राजनीति और कानून संबंधी विषयों में दक्ष बनाता है।
  • शनि की प्रसन्नता के लिए काले रंग की वस्तुएं जैसे काला कपड़ा, तिल, उड़द, लोहे का दान या चढ़ावा शुभ      होता है। वहीं गुड़, खट्टे पदार्थ या तेल भी शनि को प्रसन्न करता है।
  • शनि की महादशा 19 वर्ष की होती है। शनि को अनुकूल करने के लिये नीलम रत्न धारण करना प्रभावी माना गया है।
  • शनि के बुरे प्रभाव से डायबिटिज, गुर्दा रोग, त्वचा रोग, मानसिक रोग, कैंसर और वात रोग होते हैं। जिनसे राहत का उपाय शनि की वस्तुओं का दान है।
शनिवार व्रत कथा:  एक समय सभी नवग्रहओं : सूर्य, चंद्र, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु में विवाद छिड़ गया, कि इनमें सबसे बड़ा कौन है? सभीआपसं ऎंल ड़ने लगे, और कोई निर्णय ना होने पर देवराज इंद्र के पास निर्णय कराने पहुंचे. इंद्र इससे घबरा गये, और इस निर्णय को देने में अपनी असमर्थता जतायी. परन्तु उन्होंने कहा, कि इस समय पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य हैं, जो कि अति न्यायप्रिय हैं. वे ही इसका निर्णय कर सकते हैं. सभी ग्रह एक साथ राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे, और अपना विवाद बताया। साथ ही निर्णय के लिये कहा। राजा इस समस्या से अति चिंतित हो उठे, क्योंकि वे जानते थे, कि जिस किसी को भी छोटा बताया, वही कुपित हो उठेगा. तब राजा को एक उपाय सूझा. उन्होंने सुवर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से नौ सिंहासन बनवाये, और उन्हें इसी क्रम से रख दिय. फ़िर उन सबसे निवेदन किया, कि आप सभी अपने अपने सिंहासन पर स्थान ग्रहण करें. जो अंतिम सिंहासन पर बठेगा, वही सबसे छोटा होगा. इस अनुसार लौह सिंहासन सबसे बाद में होने के कारण, शनिदेव सबसे बाद में बैठे. तो वही सबसे छोटे कहलाये. उन्होंने सोच, कि राजा ने यह जान बूझ कर किया है. उन्होंने कुपित हो कर राजा से कहा "राजा! तू मुझे नहीं जानता. सूर्य एक राशि में एक महीना, चंद्रमा सवा दो महीना दो दिन, मंगल डेड़ महीना, बृहस्पति तेरह महीने, व बुद्ध और शुक्र एक एक महीने विचरण करते हैं. परन्तु मैं ढाई से साढ़े-सात साल तक रहता हुं. बड़े बड़ों का मैंने विनाश किया है. श्री राम की साढ़े साती आने पर उन्हें वनवास हो गया, रावण की आने पर उसकी लंका को बंदरों की सेना से परास्त होना पढ़ा.अब तुम सावधान रहना. " ऐसा कहकर कुपित होते हुए शनिदेव वहां से चले. अन्य देवता खुशी खुशी चले गये. कुछ समय बाद राजा की साढ़े साती आयी. तब शनि देव घोड़ों के सौदागर बनकर वहां आये. उनके साथ कई बढ़िया घड़े थे. राजा ने यह समाचार सुन अपने अश्वपाल को अच्छे घोड़े खरीदने की अज्ञा दी. उसने कई अच्छे घोड़े खरीदे व एक सर्वोत्तम घोड़े को राजा को सवारी हेतु दिया. राजा ज्यों ही उसपर बैठा, वह घोड़ा सरपट वन की ओर भागा. भषण वन में पहुंच वह अंतर्धान हो गया, और राजा भूखा प्यासा भटकता रहा. तब एक ग्वाले ने उसे पानी पिलाया. राजा ने प्रसन्न हो कर उसे अपनी अंगूठी दी. वह अंगूठी देकर राजा नगर को चल दिया, और वहां अपना नाम उज्जैन निवासी वीका बताया. वहां एक सेठ की दूकान उसने जल इत्यादि पिया. और कुछ विश्राम भी किया. भाग्यवश उस दिन सेठ की बड़ी बिक्री हुई. सेठ उसे खाना इत्यादि कराने खुश होकर अपने साथ घर ले गया. वहां उसने एक खूंटी पर देखा, कि एक हार टंगा है, जिसे खूंटी निगल रही है. थोड़ी देर में पूरा हार गायब था। तब सेठ ने आने पर देखा कि हार गायब जहै। उसने समझा कि वीका ने ही उसे चुराया है। उसने वीका को कोतवाल के पास पकड़वा दिया। फिर राजा ने भी उसे चोर समझ कर हाथ पैर कटवा दिये। वह चैरंगिया बन गया।और नगर के बहर फिंकवा दिया गया। वहां से एक तेली निकल रहा था, जिसे दया आयी, और उसने वीका को अपनी गाडी़ में बिठा लिया। वह अपनी जीभ से बैलों को हांकने लगा। उस काल राजा की शनि दशा समाप्त हो गयी। वर्षा काल आने पर वह मल्हार गाने लगा। तब वह जिस नगर में था, वहां की राजकुमारी मनभावनी को वह इतना भाया, कि उसने मन ही मन प्रण कर लिया, कि वह उस राग गाने वाले से ही विवाह करेगी। उसने दासी को ढूंढने भेजा। दासी ने बताया कि वह एक चौरंगिया है। परन्तु राजकुमारी ना मानी। अगले ही दिन से उठते ही वह अनशन पर बैठ गयी, कि विवाह करेगी तोइ उसी से। उसे बहुतेरा समझाने पर भी जब वह ना मानी, तो राजा ने उस तेली को बुला भेजा, और विवाह की तैयारी करने को कहा।फिर उसका विवाह राजकुमारी से हो गया। तब एक दिन सोते हुए स्वप्न में शनिदेव ने रानजा से कहा: राजन्, देखा तुमने मुझे छोटा बता कर कितना दुःख झेला है। तब राजा ने उससे क्षमा मांगी, और प्रार्थना की , कि हे शनिदेव जैसा दुःख मुझे दिया है, किसी और को ना दें। शनिदेव मान गये, और कहा: जो मेरी कथा और व्रत कहेगा, उसे मेरी दशा में कोई दुःख ना होगा। जो नित्य मेरा ध्यान करेगा, और चींटियों को आटा डालेगा, उसके सारे मनोरथ पूर्ण होंगे। साथ ही राजा को हाथ पैर भी वापस दिये। प्रातः आंख खुलने पर राजकुमारी ने देखा, तो वह आश्चर्यचकित रह गयी। वीका ने उसे बताया, कि वह उज्जैन का राजा विक्रमादित्य है। सभी अत्यंत प्रसन्न हुए। सेतठ ने जब सुना, तो वह पैरों पर गिर्कर क्षमा मांगने लगा। राजा ने कहा, कि वह तो शनिदेव का कोप था। इसमें किसी का कोई दोष नहीं। सेठ ने फिर भी निवेदन किया, कि मुझे शांति तब ही मिलेगी जब आप मेरे घर चलकर भोजन करेंगे। सेठ ने अपने घर नाना प्रकार के व्यंजनों ने राजा का सत्कार किया। साथ ही सबने देखा, कि जो खूंटी हार निगल गयी थी, वही अब उसे उगल रही थी। सेठ ने अनेक मोहरें देकर राजा का धन्यवाद किया, और अपनी कन्या श्रीकंवरी से पाणिग्रहण का निवदन किया। राजा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। कुछ समय पश्चात राजा अपनी दोनों रानियों मनभावनी और श्रीकंवरी को दहेज सहित लेकर उज्जैन नगरी को चले। वहां पुरवासियों ने सीमा पर ही उनका स्वागत किया। सारे नगर में दीपमाला हुई, व सबने खुशी मनायी। राजा ने घोषणा की , कि मैंने शनि देव को सबसे छोटा बताया थ, जबकि असल में वही सर्वोपरि हैं। तबसे सारे राज्य में शनिदेव की पूजा और कथा नियमित होने लगी। सारी प्रजा ने बहुत समय खुशी और आनंद के साथ बीताया। जो कोई शनि देव की इस कथा को सुनता या पढ़ता है, उसके सारे दुःख दूर हो जाते हैं। व्रत के दिन इस कथा को अवश्य पढ़ना चाहिये।

शनिवार का व्रत कैसे करें?
* ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नदी या कुएँ के जल से स्नान करें।
* तत्पश्चात पीपल के वृक्ष पर जल अर्पण करें।
* लोहे से बनी शनि देवता की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएँ।
* फिर इस मूर्ति को चावलों से बनाए चौबीस दल के कमल पर स्थापित करें।
* इसके बाद काले तिल, फूल, धूप, काला वस्त्र व तेल आदि से पूजा करें।
* पूजन के दौरान शनि के निम्न दस नामों का उच्चारण करें- कोणस्थ, कृष्ण, पिप्पला, सौरि, यम, पिंगलो, रोद्रोतको, बभ्रु, मंद, शनैश्चर।
* पूजन के बाद पीपल के वृक्ष के तने पर सूत के धागे से सात परिक्रमा करें।
* इसके पश्चात निम्न मंत्र से शनिदेव की प्रार्थना करें-

शनैश्चर नमस्तुभ्यं नमस्ते त्वथ राहवे।
केतवेअथ नमस्तुभ्यं सर्वशांतिप्रदो भव।।



* इसी तरह सात शनिवार तक व्रत करते हुए शनि के प्रकोप से सुरक्षा के लिए शनि मंत्र की समिधाओं में, राहु की कुदृष्टि से सुरक्षा के लिए दूर्वा की समिधा में, केतु से सुरक्षा के लिए केतु मंत्र में कुशा की समिधा में, कृष्ण जौ, काले तिल से 108 आहुति प्रत्येक के लिए देनी चाहिए।
* फिर अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराकर लौह वस्तु धन आदि का दान अवश्य करें।

नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥

शनि का व्रत करने से लाभ
* शनिवार की पूजा सूर्योदय के समय करने से श्रेष्ठ फल मिलता है।
* शनिवार का व्रत और पूजा करने से शनि के प्रकोप से सुरक्षा के साथ राहु, केतु की कुदृष्टि से भी सुरक्षा होती है।
* मनुष्य की सभी मंगलकामनाएँ सफल होती हैं।
* व्रत करने तथा शनि स्तोत्र के पाठ से मनुष्य के जीवन में धन, संपत्ति, सामाजिक सम्मान, बुद्धि का विकास और परिवार में पुत्र, पौत्र आदि की प्राप्ति होती है।
शनि देव : कैसे करें शनिदेव को प्रसन्न ? शनि देव : कैसे करें शनिदेव को प्रसन्न ? Reviewed by Mukesh Mali on 7/28/2012 05:19:00 AM Rating: 5

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